लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-6)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए
गतांक से आगे:-
गाड़ी तेज रफ्तार से अपने गन्तव्य की ओर जा रही थी ।भूषण प्रसाद देख रहे थे कि जब से राज गाड़ी में बैठा था तब से उसने एक शब्द भी मुंह से नहीं निकाला था।धीर गंभीर बना लगातार खिड़की से बाहर देखें जा रहा था । आखिरकार हारकर भूषण प्रसाद ने ही बात शुरू की ,
"तुम्हें क्या लगता है राज ? ये नरकंकाल वास्तव में उस मूर्तिकार और नर्तकी के है।"
राज कुछ सोचते हुए बोला ,"अंकल वैसे हम अभी कुछ नहीं कह सकते क्योंकि हमारे पास इसका कोई सबूत नहीं है इसीलिए तो जो इस महल के खंडहर से जुड़ा हुआ है "लाल हवेली " हम उधर ही जा रहे हैं । क्योंकि तस्वीर में भी पीछे लाल हवेली ही दिखाई दे रही थी और वो लड़की भी कल लाल हवेली के आगे ही उतरी थी । मैं अचरज में था कि वो हवेली तो कभी से बंद पड़ी है और बहुत ही जर्जर हालत में है तो फिर उसमें वो लड़की क्या करने गयी थी ।वैसे भी उस सुनसान हवेली में अच्छे से अच्छे जिगर वाले नहीं जा सकते वो भी ऐसे आंधी तूफान वाले मौसम में ।और वो लड़की झट से गाड़ी से उतर कर उस हवेली में चली गई। मुझे बड़ा अजीब सा लगा था ।पर उसने गाड़ी मे बैठने से पहले मेरे ऊपर ये पाबंदी लगा दी थी कि मैं उससे कोई सवाल नही करूंगा।
इसलिए मैं चाहतें हुए भी उससे कुछ नही पूछ पाया।वैसे अंकल आप तो पुरातत्व विभाग में है आप को तो शहर की जानकारी होगी कि वहां हाल ही में कोई रहने आया है।वैसे मुझे नहीं लगता उस टूटी फूटी हवेली मे कोई रह भी सकता है।"
भूषण प्रसाद बोले,"बेटा मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं है हां विभाग वालों ने ऐतिहासिक होने के नाते उस हवेली में एक चौकीदार ज़रूर लगा रखा है।अब ये पता नहीं उसकी कोई बेटी है या नहीं।"
"बस अंकल हम पहुंचने ही वाले हैं "लाल हवेली" सब पता चल जाएगा कि माजरा क्या है?" राज ने कुछ सोचते हुए कहा।
गाड़ी आखिरकार हवेली के जीर्ण शीर्ण दरवाज़े के पास आकर खड़ी हो गयी ।भूषण प्रसाद पुरातत्व विभाग अधिकारी थे तो उनके पास सभी पुरानी इमारतों के तालो की चाबी थी।और संयोग से आज सुबह घर से निकलते समय उन्होंने वो चाबी अपने साथ ले ली थी।
दोनों गाड़ी से उतरे तो भूषण प्रसाद आगे आगे और राज पीछे-पीछे।भूषण प्रसाद ने अपनी कड़क आवाज में पुकारा,"कोई है क्या।……चौकीदार…चौकीदार।"
तभी एक सत्तर पिचहतर साल का बूढ़ा जिसकी कमर झुकी हुई थी वो खांसता हुआ आया और बोला,"जी,साहब बोलिए, मैं ही यहां का चौकीदार हूं हरिया।"
वह चौकीदार बड़ा ही अजीब लग रहा था । पलकें तक नहीं झपका रहा था ।ऐसे लग रहा था जैसे कोई डरावनी चीज देखने पर आंखें डर के मारे स्थिर हो जाती है ऐसी ही हरिया की हालत थी । वह होंठों ही होंठों में बड़बड़ाता रहता था।
"हरिया । यहां सब ठीक से तो है ना ।" भूषण प्रसाद ने पूछा।
"जी साहब ।सब ठीक ही है ।पर अब आप कहेंगे कि आजकल के जमाने में भी मैं ऐसी बात कर रहा हूं पर मुझे बहुत बार हवेली से किसी लड़की के रोने की आवाज आती है ।साहब बहुत ढूंढता हूं उसे पर वो दिखाई ही नहीं देती ।रात को सही से सो नहीं पाता।"
जब राज ने ये बात सुनी तो उसकी रगों में एक करंट सा दौड़ गया।वह भूषण प्रसाद की ओर देखकर बोला,"अंकल मैं नहीं कहता था कि मैंने एक लड़की देखी थी जो यही हवेली के पास मेरी गाड़ी से उतर कर इसी हवेली में गई थी पर मैं बरसात अधिक होने के कारण ये नहीं देख पाया कि वो अंदर कैसे चली गयी। हरिया काका! क्या वो रोते हुए कुछ बोलती है ?"
"हां साहब कभी कभी उसकी सिसकियों में वह यह बोलती है"देव , मेरे देव तुम कहां हो ।देखो कितने साल बीत गये तुम से जुदा हुए पर तुम ना आये।" हरिया ने अपनी बाहर निकली आंखों को और आश्चर्य से फैला कर कहा।
मिस्टर भूषण प्रसाद ने राज को साथ लिया और हवेली के मुख्य दरवाजे की ओर बढ़ गये। दरवाजा बहुत ही जीर्ण अवस्था में था उस पर बड़े ही पुरानी जमाने का ताला लगा था तकरीबन एक किलो वजन वाला ।भूषण प्रसाद ने उस ताले की चाबी अपने जेब से निकाली तो राज उस चाबी को देखकर एकदम चौंक गया एक बालिश्त जितनी चाबी थी ।वह उसे देखकर बोला"वाह अंकल ताले के साथ साथ चाबी भी बड़ी ही एंटीक है।"
भूषण प्रसाद उसे देख कर मुस्कुरा उठे।ताला खोलकर दोनों मुख्य दरवाजे से हवेली में प्रवेश कर गये।
हवेली अंदर से बड़ी ही सुंदर थी ।ऐसे लगता था जैसे किसी ने बड़े ही जतन से हवेली के साजो सामान को इकठ्ठा किया था ।एक एक भित्ति चित्र, नक्काशी,और सालों से रखा फर्नीचर जो उस समय में पीतल और कांसे से बना था ।एक एक चीज किसी कलाकार की तरह उकेरी गयी थी।उसको देखकर राज बोला,
"अंकल आज मैंने ये हवेली अंदर से पहली बार देखी है पहले मैं और नयना बस इसके बगीचे तक ही आये थे पर अंदर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे मैं कभी से इस हवेली में आ जा रहा हूं।ऊपर सीढ़ियां चढ़कर दाये हाथ के कमरे में कोई घुंघरू बजा रहा है ।" यह कहकर वह सीढ़ियां चढ़ने लगा।
पर बड़े ही अचरज की बात थी कि भूषण प्रसाद को कोई घुंघरू की आवाज नहीं आ रही थी ।राज बढ़ता चला जा रहा था ।एक बार तो भूषण प्रसाद उसे रोकने को हुए थे पर जब दो तीन आवाज देने पर भी राज नहीं रुका तो वो भी उसके पीछे-पीछे सीढ़ियां चढ़ने लगे।
राज सीढ़ियां चढ़कर यंत्रवत दांये तरफ मुड़ गया ।ऐसा लग रहा था जैसे वो इस जगह का अभ्यस्त हो थोड़ी दूर जाकर वह एक कमरे के आगे रूक गया और जोर से धक्का देकर उस कमरे के दरवाज़े को खोला और बोला,
"चंद्रिका लो मैं आ गया ।" यह कहकर राज बेहोश हो गया।
कहानी अभी जारी है……..
RISHITA
02-Sep-2023 09:45 AM
Amazing story
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madhura
01-Sep-2023 10:45 AM
Awesome
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Anjali korde
29-Aug-2023 11:05 AM
Very nice
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